घनी
जटाओं बीच में, शिव ने झेला भार।
शिव
ने झेला भार, उसे माथे बैठाया
मृत्युलोक
में भेज, धरा
को स्वर्ग बनाया।
अमृत
जल का घूँट, करे हर रोगी चंगा
लिए
वेगमय धार, स्वर्ग से उतरी गंगा।
तुमसे
मोक्ष मिला हमें, तुम ही तारनहार।
गंगा
माँ तुमने किए, जन-जन पर उपकार।
जन-जन
पर उपकार, धरा
को स्वर्ग बनाया
किया
जहाँ विश्राम, नगर वो धाम कहाया।
दिये
स्वस्थ वरदान, उबारा जग को गम से
तुम
ही तारनहार, मोक्ष भी पाया तुमसे।
आते हैं सब मोक्ष को, गंगा तेरे
द्वार।
पर
तेरे इस द्वार का, कौन करे उद्धार।
कौन
करे उद्धार, धार में सभी नहाते
और प्रदूषित तत्व, तुझे अर्पण
कर जाते।
निर्मलता
की बात, किसी को सूझी है कब
माँ
बस तेरे द्वार, मोक्ष को आते हैं सब।
चलिये
मित्रों प्रण करें, हम भारत के लाल।
गंगा
फिर निर्मल बने, ऐसा करें कमाल।
ऐसा
करें कमाल, सभी मन से हों तत्पर
हर
संभव श्रमदान, करें सब साथी मिलकर।
पूरा
हो अभियान, घरों से आज निकलिए
हम भारत के लाल, प्रण करें मित्रों चलिये।-कल्पना रामानी
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