सिर्फ भयावह कल्पना, बेटी बिन संसार।
बेटी बिन संसार, बात सच्ची यह मानें
अगर किया ना गौर, अंत दुनिया का जानें।
कहनी इतनी बात, करें स्वागत आगत का
जीवन का आधार बेटियाँ, मूल जगत का।
-------------------------------------------
माँ मेरी, तुझसे करे, बेटी एक सवाल,
मुझे मारने गर्भ में, बिछा रही क्यों जाल?
बिछा रही क्यों जाल, ज़रा समझा दे मुझको
अपना ही अपमान, किसलिए प्यारा तुझको।
क्यों पिछड़ी है सोच, नए युग में भी तेरी
अंजन्मी का दोष, बता क्या है माँ मेरी?
----------------------
द्वापर युग का कंस था, हुआ बहुत बदनाम
मगर कलियुगी कंस तो, गली गली में आम।
गली गली में आम, सभ्य,सज्जन कहलाते।
अनगिन कन्या भ्रूण, मारकर जश्न मनाते।
यही देश के पूत, जनक,जन नेता, नागर
कहते ओढ़ नकाब, कंस का युग था द्वापर।
-कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment