गणपति पूजन पर्व से, फैला जग में ओज।
घर
घर होती आरती, गायन वादन रोज।
गायन
वादन रोज, सकल
जन हँसते गाते
लड्डू, मोदक, भोग, लगा सब मिलकर
खाते।
दीपक, अगर, सुगंध, श्लोक, मंत्रों का
गुंजन
मन
को करता मुग्ध, भावमय गणपति पूजन।
परम्पराएँ
देश की, नैतिकता
का मूल।
भोली
जनता प्रेम से, करती सहज
कबूल।
करती
सहज कबूल, श्रंखला
जोड़ कर्म की
तन
की पीड़ा भूल, जगाती ज्योत धर्म की।
कहनी
इतनी बात, सभी
त्यौहार मनाएँ
नैतिकता
का मूल, देश
की परम्पराएँ।
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